तुम साथ ही तो हो


             " तुम साथ ही तो हो "

तुम्हें याद करना, सचमुच किसी हसीं आरज़ू को तराशने सा है। 
चाँद पिघलकर आँखों में उतर आता है, बेरंग पानी सा बनकर,
तुमको सोचने लगूँ तो। लहलहाने लगते हैं पलकों की कच्ची पगडंडियों के किनारे
बसे हुए ख़्वाबों के खेत,
और खिल उठती  है नन्ही कलियाँ गुदगुदाती ख्वाहिशों की।
 साँझ की बहती नदी, क्षितिज के पत्थरों से
टकरा कर लौटने लगती है। 
रात के हाथ से छूट जाता है पैमाना अँधेरे का ,
छिटक कर बिखर जाती है, हर ओर हवा में, 
किसी इत्र की तरह तुम्हारे एहसास की खुशबू ।

छाने लगती है हर शय पर तुम्हारे होने की खुमारी। तुम बस कहने को नहीं होते हो साथ,

वरना साँस का हर रेशा, बुनता है तुम्हारे नाम के धागे। 

बुझ जाते हैं मायूसियों के कई जलते दीये। 
भरने लगती हैं वक़्त की दी हुई कई ख़राशें। 
और मानने लगता हूँ मैं, खुद को 
दुनिया का सबसे ख़ुशनसीब शख़्स
क्योंकि इतना सच्चा और मासूम है
मेरे ख़्यालों का ये हिस्सा
कि चाहे कितना कुछ भी न हो मेरे पास,

मैं खुद को कभी अधूरा नहीं लगता। 
वहम ही सही पर 'मोहब्बत शायद यूँ ही पूरे होने का नाम है।' ❤️

- Sugandh mishra 





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